कबीर के दोहे - चाह मिटी, चिंता मिटी मनवा बेपरवाह । जिसको कुछ नहीं चाहिए वह शहनशाह॥ माटी कहे कुम्हार से, तु क्या रौंदे मोय । एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूगी तोय ॥ माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर । कर का मन का डार दे, मन का मनका फेर ॥ तिनका कबहुँ ना निंदये, जो पाँव तले होय । कबहुँ उड़ आँखो पड़े, पीर घानेरी होय ॥ गुरु गोविंद दोनों खड़े, काके लागूं पाँय । बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो मिलाय ॥ सुख मे सुमिरन ना किया, दु:ख में करते याद । कह कबीर ता दास की, कौन सुने फरियाद ॥ साईं इतना दीजिये, जा मे कुटुम समाय । मैं भी भूखा न रहूँ, साधु ना भूखा जाय ॥ धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय । माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय ॥ कबीरा ते नर अँध है, गुरु को कहते और । हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर ॥ माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर । आशा तृष्णा न मरी, कह गए दास कबीर ॥ रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय । हीरा जन्म अमोल था, कोड़ी बदले जाय ॥ दुःख में सुमिरन सब करे सुख में करै न कोय। जो सुख में सुमिरन करे दुःख काहे को होय ॥ बडा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर। पंथी को छाया नही फल ला...
किसी चीज़ के पीछे छिपी भावना को पहचान लेने से वह चीज़ उपहार बन जाती है। और उस भावना को न पहचानने से उपहार भी केवल एक चीज़ बनकर रह जाता है। एक कलम तब उपहार बन जाती है, जब आप उस भावना को पहचान लेते हैं, जिस भावना से वह आपको दी गई है। जब आप अपने लालन-पालन में रची-बसी अपने माता-पिता की भावना को पहचान लेते हैं, तब आपको अपना बचपन उपहार जैसा लगने लगता है। शिक्षा तब उपहार बन जाती है, जब आप उस शिक्षक की भावना को पहचान लेते हैं, जिसने अपना ज्ञान आपमें उड़ेल दिया है। चीज़ उपहार नहीं होती, बल्कि उपहार तो एक दृष्टिकोण है - उस चीज़ के पीछे छिपी भावना पर ध्यान देने का दृष्टिकोण। इस अर्थ में ‘ आज ’ एक उपहार ही है। जिस तरह हर उपहार किसी न किसी स्रोत से आता है, उसी तरह ‘आज’ रूपी बहुमूल्य उपहार भी आपको या तो ईश्वर की तरफ़ से भेंट में मिला है या इसका यह अर्थ है कि आप अपना पिछला दिन जी चुके हैं। कल रात जो लोग सोए थे, उनमें से हर व्यक्ति आज सुबह जाग नहीं सका है। लेकिन आप तो सचमुच जागे हैं, यानी ऊपर विराजमान कोई शक्ति अभी आपको इस योग्य मानती है कि आपको एक और ‘आज’ दिया जाए। आपको ये च...
जीवन शतरंज के खेल की तरह है और यह खेल आप ईश्वर के साथ खेल रहे हैं। आपकी हर चाल के बाद, अगली चाल वो चलता है। आपकी चाल आपकी ‘पसंद’ कहलाती है और उसकी चाल ‘परिणाम’ कहलाती है। आपकी परीक्षा ली जाती है… आपको चुनौती दी जाती है… आपको कोने में धकेल दिया जाता है। और फिर, जब वह देखता है कि आप अपना खेल बख़ूबी खेल रहे हैं तो वह आपको बाज़ी जीतने देता है और इस तरह ख़ुद भी जीत जाता है।
ye taariif ke kaabil hai
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