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शिक्षा का अर्थ केवल किताबी ज्ञान नही है....

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स्वामी विवेकानंद ने कहा था, “आपके मस्तिष्क में भर दी गई वह ढ़ेर सारी जानकारी और सूचना शिक्षा नहीं है, जो जीवन के लिए अनुपयुक्त होने के कारण जीवन भर उसमें उत्पात मचाती रहती है। हममें जीवन निर्माण, मानवीयता निर्माण तथा चरित्र निर्माण करने वाले विचार होने चाहिए। यदि ऐसे पाँच विचार भी आप आत्मसात कर लेते हैं, उन्हें अपना जीवन चरित्र बना लेते हैं, तो आप उस व्यक्ति से कहीं ज़्यादा शिक्षित हैं, जिसने पूरा पुस्तकालय कंठस्थ कर रखा हो। हमें उस शिक्षा की ज़रूरत है, जिसके द्वारा चरित्र का निर्माण हो, मनोबल में वृद्धि हो, प्रज्ञा का विस्तार हो और जिसके बल पर व्यक्ति अपने पैरों पर खड़ा हो सके।”  जाने क्यों और कैसे हम किताबी ज्ञान को, स्कूली पढ़ाई को ही शिक्षित होना मान बैठे हैं। अभिभावकों से लेकर शिक्षकों तक, हर किसी का पूरा ध्यान स्कूली पढ़ाई की ओर ही हो गया है। कोई बालक यदि जीवन के ही विज्ञान से अनभिज्ञ बना रहता है, तो विज्ञान पढ़कर भी वह भला क्या कर लेगा? हम अपने बच्चों को इतिहास पढ़ने और उसे रटने के लिए तो कहते हैं, लेकिन हम उन्हें इतिहास रचने के लिए नहीं कहते। कोई बालक अपनी पहली, दूसरी या ती

जीवन शतरंज के.....

जीवन शतरंज के खेल की तरह है  और यह खेल आप ईश्वर के साथ खेल रहे हैं।  आपकी हर चाल के बाद,  अगली चाल वो चलता है।  आपकी चाल आपकी ‘पसंद’ कहलाती है  और उसकी चाल ‘परिणाम’ कहलाती है।  आपकी परीक्षा ली जाती है…  आपको चुनौती दी जाती है…  आपको कोने में धकेल दिया जाता है।  और फिर, जब वह देखता है कि आप अपना खेल बख़ूबी खेल रहे हैं तो वह आपको बाज़ी जीतने देता है  और इस तरह ख़ुद भी जीत जाता है।

जीवन के लिए .....

अपने बच्चों के लिए हम ही वह इकलौती क़ुरान हैं  जिसे वे अपने जीवन में पढ़ेंगे,  हम ही वह इकलौता वेद हैं  जिसे वे देखेंगे,  वह इकलौती बाइबल हैं    जिसे वे अनुभव करेंगे,  वह इकलौता धर्म हैं  जिसका वे अनुसरण करेंगे।  आपका व मेरा जीवन उनके लिए या तो एक चेतावनी बनेगा या एक मिसाल। मैं जानता हूँ कि यह एक बड़ी भारी ज़िम्मेदारी है।लेकिन इसके अलावा क्या कोई तरीक़ा है यह बताने का कि आप इस धरती पर उनसे पहले क्यों आए थे?

‘आज’ आपको ईश्वर की ओर से उपहार में मिला है।

किसी चीज़ के पीछे छिपी भावना को पहचान लेने से वह चीज़ उपहार बन जाती है। और उस भावना को न पहचानने से उपहार भी केवल एक चीज़ बनकर रह जाता है।   एक कलम तब उपहार बन जाती है, जब आप उस भावना को पहचान लेते हैं, जिस भावना से वह आपको दी गई है। जब आप अपने लालन-पालन में रची-बसी अपने माता-पिता की भावना को पहचान लेते हैं, तब आपको अपना बचपन उपहार जैसा लगने लगता है।  शिक्षा तब उपहार बन जाती है, जब आप उस शिक्षक की भावना को पहचान लेते हैं, जिसने अपना ज्ञान आपमें उड़ेल दिया है।    चीज़ उपहार नहीं होती, बल्कि उपहार तो एक दृष्टिकोण है - उस चीज़ के पीछे छिपी भावना पर ध्यान देने का दृष्टिकोण।   इस अर्थ में ‘ आज ’ एक उपहार ही है। जिस तरह हर उपहार किसी न किसी स्रोत से आता है, उसी तरह ‘आज’ रूपी बहुमूल्य उपहार भी आपको या तो ईश्वर की तरफ़ से भेंट में मिला है या इसका यह अर्थ है कि आप अपना पिछला दिन जी चुके हैं। कल रात जो लोग सोए थे, उनमें से हर व्यक्ति आज सुबह जाग नहीं सका है। लेकिन आप तो सचमुच जागे हैं, यानी ऊपर विराजमान कोई शक्ति अभी आपको इस योग्य मानती है कि आपको एक और ‘आज’ दिया जाए। आपको ये चौबीस घंटे दिए जाने के पी