वायु बहती शीत-निष्ठुर!hb

वायु बहती शीत-निष्ठुर!

ताप जीवन श्वास वाली,
मृत्यु हिम उच्छवास वाली।
क्या जला, जलकर बुझा, ठंढा हुआ फिर प्रकृति का उर!
वायु बहती शीत-निष्ठुर!

पड़ गया पाला धरा पर,
तृण, लता, तरु-दल ठिठुरकर
हो गए निर्जीव से--यह देख मेरा उर भयातुर!
वायु बहती शीत-निष्ठुर!

थी न सब दिन त्रासदाता
वायु ऐसी--यह बताता
एक जोड़ा पेंडुकी का डाल पर बैठा सिकुड़-जुड़!
वायु बहती शीत-निष्ठुर!

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

कबीर के दोहे

शिक्षा का अर्थ केवल किताबी ज्ञान नही है....

एक नीम-मंजरीrdm