‘आज’ आपको ईश्वर की ओर से उपहार में मिला है।

किसी चीज़ के पीछे छिपी भावना को पहचान लेने से वह चीज़ उपहार बन जाती है। और उस भावना को न पहचानने से उपहार भी केवल एक चीज़ बनकर रह जाता है। 
एक कलम तब उपहार बन जाती है, जब आप उस भावना को पहचान लेते हैं, जिस भावना से वह आपको दी गई है।
जब आप अपने लालन-पालन में रची-बसी अपने माता-पिता की भावना को पहचान लेते हैं, तब आपको अपना बचपन उपहार जैसा लगने लगता है।
 शिक्षा तब उपहार बन जाती है, जब आप उस शिक्षक की भावना को पहचान लेते हैं, जिसने अपना ज्ञान आपमें उड़ेल दिया है। 
 चीज़ उपहार नहीं होती, बल्कि उपहार तो एक दृष्टिकोण है - उस चीज़ के पीछे छिपी भावना पर ध्यान देने का दृष्टिकोण। 

इस अर्थ में ‘आज’ एक उपहार ही है। जिस तरह हर उपहार किसी न किसी स्रोत से आता है, उसी तरह ‘आज’ रूपी बहुमूल्य उपहार भी आपको या तो ईश्वर की तरफ़ से भेंट में मिला है या इसका यह अर्थ है कि आप अपना पिछला दिन जी चुके हैं। कल रात जो लोग सोए थे, उनमें से हर व्यक्ति आज सुबह जाग नहीं सका है। लेकिन आप तो सचमुच जागे हैं, यानी ऊपर विराजमान कोई शक्ति अभी आपको इस योग्य मानती है कि आपको एक और ‘आज’ दिया जाए। आपको ये चौबीस घंटे दिए जाने के पीछे की उस दैवीय भावना को पहचानें। यह जान लें कि आपका ‘आज’ ईश्वर की ओर से आपको दिया गया एक उपहार है। यह समझ लें कि उपहार के साथ किया गया दुर्व्यवहार उसके दाता के प्रति किया गया दुर्व्यवहार होगा। अपने जीवन का बर्बाद किया गया एक भी दिन इस उपहारदाता के साथ किया गया दुर्व्यवहार है, विश्वासघात है। जब आप किसी उपहार का महत्व जान जाते हैं, केवल तभी आप उसका मूल्य समझ सकते हैं। आज’ को महत्व दें और इसे मूल्यवान बनाएँ। आज आप अपने जीवन के एक दिन का सौदा करेंगे, कि इसके बदले में आपको क्या मिलेगा। इसलिए अपने आज को जितना हो सके उतना उत्पादक बनाएँ। आज आपके शेष जीवन का पहला दिन है। इसलिए अपने अतीत को लक्ष्मण रेखा के पीछे बाँध दें, विश्वास करें कि बीता हुआ कल तो कल के साथ ही ख़त्म हो गया है, इसलिए भविष्य में जाने के लिए अपने ‘स्पीड बटन’ को दबा दें। ‘आज’ न तो आपके अतीत के दोषों में रुचि रखता है और न ही भविष्य की अनिश्चितताओं से विचलित होता है - यह अपने आपमें एक स्वतंत्र दिन है, अपने आपमें एक अवसर है, और अपने आपमें जीवन का एक अंश भी। इसलिए आप अपने प्रत्येक ‘आज’ का ख़याल रखें, इसी से आप अपने पूरे जीवन का भी ख़याल रख सकेंगे। बुद्ध ने कहा है, “उठो और आभार प्रकट करो, क्योंकि यदि आज हमने बहुत अधिक नहीं सीखा है तो थोड़ा-बहुत तो सीखा ही है, और यदि हमने थोड़ा-बहुत भी नहीं सीखा है तो कम से कम हम बीमार तो नहीं पड़े हैं, और यदि हम बीमार पड़ भी गए हैं तो भी कम से कम हम जीवित तो हैं, इसलिए हम सब को अभारी होना चाहिए।” प्रार्थना करें, “हे ईश्वर, मेरा यह दिन मुझे आपकी ओर से मिला उपहार है, और इस दिन को मैं जिस तरह जिऊँगा, वह मेरी तरफ़ से आपको एक उपहार होगा।” 

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